प्रॉपर्टी का वैल्यू इन यूज'
Value-in-use
प्रॉपर्टी का लोकेशन ही प्रॉपर्टी की कीमत तय करने का मुख्य आधार होता है इसके बाद, प्रॉपर्टी की उम्र, कंस्ट्रक्शन की उम्र प्रॉपर्टी से होने वाली आय और भी कुछ चीजों पर गौर किया जाता है अंत में, ये सब बातें मिलकर प्रॉपर्टी की वास्तविक कीमत निर्धारित करती हैं निर्धारण के इस तरीके को प्रॉपर्टी का वैल्यूएशन कहते हैं .
इस कड़ी में "इंटरनैशनल वैल्यूएशन स्टैंडर्ड्स कमिटी " के आठ इडिशन प्रकाशित कर चुकी है। दुनियाभर के प्रफेशनल संस्थान इन स्टैंडर्ड्स को लागू करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर एक जैसा अप्रेज़ल सिस्टम लागू हो सके इस बारे में मैंने आपने ब्लॉग में काफी कुछ लिखा है .
रिअल एस्टेट अप्रेज़ल के विभिन्न तरीकों के आधार पर प्रॉपर्टी की वैल्यू की कई रूपों में गणना की जा सकती है
इस ब्लॉग में मै Value-in-use को देसी भाषा में कुछ उदाहरण सहित लिखने का प्रयास किया है
"इंटरनैशनल वैल्यूएशन स्टैंडर्ड्स कमिटी " के अनुसार प्रॉपर्टी का Value-in-use
अगर कोई प्रॉपर्टी किसी विशेष उपभोक्ता के लिए विशेष प्रयोजन के तहत रकम उपलब्ध करा सकती है, तो उस
कीमत को 'नेट प्रजेंट वैल्यू' या 'वैल्यू इन यूज' कहेंगे ,कि 'वैल्यू इन यूज' किसी विशेष उपभोक्ता के संदर्भ में होती
है, सामान्य रूप में नहीं ऐसे में यह रकम प्रॉपर्टी की मार्किट वैल्यू से कम भी हो सकती है और उससे ज्यादा भी हो सकती है
उदहारण के लिए यह भी कह सकते है की नवीन हाई कोर्ट बोदरी के सामने जो भी व्यवसायिक परिसर बना रहे है या बनेगे वहा पर यदि आज ऑफिस स्पेस की कीमत 5००० से 7000 वर्ग फुट की कीमत पर यदि उपलब्ध हो रही है तो सामान्य तह यह कीमत ज्यादा है लेकिन देखा जाये तो यह ऑफिस स्पेस वकीलों के चेंबर या वकालत से जुडी संस्थाओ के लिए उपयुक्त है मतलब विशेष उपभोक्ता के लिए विशेष प्रयोजन के लाभ दायक है . ऐसे में 5000 से 7000 वर्ग फुट की कीमत अधिक होते हुए भी विशेष उपभोक्ता के लिए लाभदायक है . जबकि अन्य वर्ग के लिए कीमत ज्यादा है क्योकि इस का उपयोग एक विशेष वर्ग अधिक कर सकता है .